ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित और संतों की ऋतु है बसंत
बसंत ऋतु नवीनता का प्रतीक है। नवीनता उल्लास को जन्म देती है। उल्लास सुख समृद्धि का द्योतक है। सुख शांति का वास ज्ञान में है। इस ऋतु में प्रकृति अपना नया रूप दिखती है। बसंत पंचमी ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती का अवतरण इसी दिन हुआ था। साहित्य, संगीत और कला की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना इस दिन की जाती है। साहित्य बिना चिंतन के नहीं लिखा जा सकता। संगीत बिना भावना के असंभव है और कला बिना संवेदना के। साहित्य संगीत और कला क्रमशः चिंतन, भावना और संवेदना की प्रतिमूर्ति हैं। माँ सरस्वती में चिंतन, भावना और संवेदना का समन्वय है। ज्ञान रूपी सरस्वती ने अज्ञान रूपी अन्धकार (राक्षस) को मारने के लिए बसंत रूपी ऋतु को पैदा किया। माँ सरस्वती को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे शारदा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वागेश्वरी, वाणी, भारती, महाश्वेता, ब्राह्मणी, ज्ञानदा, प्रज्ञा, वाग्देवी आदि। बसंत पंचमी माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। चंद्रमा की कला के बढ़ते एवं घटते कलाओं के आधार पर हिन्दी महीने में दो पक्ष (कृष्ण एवं शुक्ल) होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं। चंद्र की बढ़ते कला की पंचमी तिथि को शुक्ल पंचमी कहते हैं।
आत्मिक ज्ञान का आयाम अनंत है। आत्मिक ज्ञान की कोई परिसीमा नहीं होती। ज्ञान का अस्तित्व भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान से है। शारीरिक क्रिया द्वारा प्राप्त ज्ञान भौतिक है। आत्मिक क्रिया द्वारा प्राप्त ज्ञान आध्यात्मिक है। भौतिक ज्ञान जीवन यापन का साधन है और आत्मिक ज्ञान इह लौकिक और पार लौकिक शक्तियों के विकास का साधन है। आध्यात्मिक ज्ञान दैवीय शक्तियों से ओतप्रोत होता है। भौतिक ज्ञान सांसारिक शक्तियों से ओतप्रोत होता है। आत्मिक ज्ञान में सूक्ष्मता होती है। सांसारिक ज्ञान में स्थूलता होती है। जो दृश्य है वो स्थूल है और जो अदृश्य है वो सूक्ष्म है। सूक्ष्मता का वास अनुभूति में है। स्थूलता का सम्बन्ध अनुभूति से नहीं है। स्थूलता स्वार्थ से फलित होती है। सूक्ष्मता स्व से फलित होती है। सांसारिक सुख एक दूसरे के स्वार्थ पर टिका है। आत्मिक सुख स्व की चेतना पर टिका है। स्थूलता में दिखावा है। भौतिक आँखों से देखी जाने वाली प्रत्येक वस्तु (सजीव या निर्जीव) स्थूलता का परिचायक है। तीसरी आँख (पीनियल ग्लैंड) से महसूस की जाने वाली प्रत्येक वस्तु (सजीव या निर्जीव) सूक्ष्मता का परिचायक है। अध्यात्म, उपासना सिखाता है। स्व (ईश्वर) के समीप बैठना ही उपासना है। ध्यान उपासना की एक विधि है। आध्यात्मिक ज्ञान को लेकर जब आप भौतिक ज्ञान की तरफ बढ़ते हैं तब वो भौतिक ज्ञान आपको दुःख न देकर सुख देता है। आत्मिक ज्ञान सांसारिक ज्ञान पर भरी पड़ता है। समाज में व्याप्त बुराइयों को कुचलने में संतो की अहम् भूमिका होती है। संतों से संस्कार का निर्माण होता है। संत, अध्यात्म रूपी मंदिर में देवता रूपी मूर्ति की स्थापना करता है। कहने का तात्पर्य यह है की एक संत अपने आत्मिक ज्ञान से अध्यात्म के द्वारा देवताओं के दर्शन करा सकता है। ऋषि मुनियों का देश कहा जाने वाला भारत इसका उदाहरण है।