रिक्त सरकारी पदों के विज्ञापन में तय आरक्षण का पालन नहीं कर रही सरकार- यशपाल आर्य
तब से उत्तराखंड लोक सेवा आयोग, उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग आदि भर्ती अभिकरणों के द्वारा सीधी भर्ती हेतु दर्जनों विज्ञापन जारी किए गए हैं. इन विज्ञापनों में एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग के लिए पदों का आवंटन संविधान द्वारा निर्धारित कोटे से न्यूनतम अथवा नगण्य प्रदान किया जा रहा है।
आर्य ने ऐसी कुछ विज्ञप्तियों के उदाहरण भी सदन के सम्मुख रखें-
1- दिनांक 1 फरवरी 2024 को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा समूह ग के अंतर्गत स्वास्थ्य कार्यकर्ता के 391 पदों का विज्ञापन जारी किया गया है. जिसमें एससी वर्ग को 19% के आधार पर 74 पदों के स्थान पर मात्र 17 पद अर्थात 4% पद प्रदान किये गये हैं. एसटी और ओबीसी की भी यही स्थिति है।
2- 5 सितंबर 2023 को आबकारी विभाग में सिपाही के 100 पदों का विज्ञापन जारी किया गया है. जिसमें एससी को 19 पदों के स्थान पर मात्र 4 पद, व ओबीसी को 14 पदो के स्थान पर मात्र 01 पद प्रदान किया गया है।
3- 21 अगस्त 2023 को उत्तराखंड राज्य कनिष्ठ अभियंता सेवा परीक्षा- 2023 द्वारा विभिन्न श्रेणियां में 1097 (एक हज़ार सत्तानवे) पदों का विज्ञापन जारी किया गया. इसमें एससी वर्ग को 19% के स्थान पर मात्र 9 %पद प्रदान किए गए हैं।
4- 21 अगस्त 2023 को उत्तराखंड राज्य कनिष्ठ अभियंता सेवा परीक्षा 2023 के विज्ञापन में सिंचाई विभाग में सिविल अभियंता के 59 पदों में से एससी एस टी को एक पद भी नहीं किया गया है. इसी विज्ञापन में पेयजल निगम में कनिष्ठ अभियंता के कुल 40 पदों में से एससी वर्ग को एक भी पद नही दिया गया है।
5- जून 2021 में राजस्व उप निरीक्षक व लेखपाल के 513 पदों का विज्ञापन जारी किया गया.जिसमें एससी वर्ग को 19% के स्थान पर 97 पद दिए जाने थे जबकि मात्र 51 पदों के साथ मात्र 10% पद प्रदान किये गये हैं. जबकि एसटी को 10 पदों के साथ 1.49% व ओबीसी को 34 पदों के साथ14% के बजाय 6.66% कोटा ही दिया गया है।
6- 30 जून 2021 को अधीनस्थ सेवा चयन आयोग देहरादून द्वारा पर्यावरण पर्यवेक्षक के 291 पदों का विज्ञापन निकाला गया था. जिसमें एससी को 55 पदों के स्थान पर मात्र 6 पद , एसटी को 2 पद व ओबीसी को मात्र 21 पद प्रदान किए गए।
7- 31 जनवरी 2024 को उत्तराखंड सम्मिलित राज्य (सिविल) प्रवर अधीनस्थ सेवा- 2024 हेतु जारी विज्ञापन में डिप्टी कलेक्टर के 09 पदों में से एससी एसटी वर्ग को एक भी पद प्रदान नहीं किया गया है।
आर्य ने कहा कि इस अवधि में ऐसे दर्जनों विज्ञापन निकाले गए हैं जिसमें एससी एसटी ओबीसी वर्गों को तय संवैधानिक आरक्षण से न्यूनतम अथवा नगण्य पद प्रदान किया जा रहे हैं ।
इस प्रकार से आरक्षित वर्गों के पदों में लगातार कटौती से आरक्षित समाज के लिए राज्याधीन सेवाओं में जाने के अवसर कम व समाप्त होते जा रहे हैं।
विचारणीय प्रश्न यह भी है, कुछ वर्ष पूर्व तक आरक्षित वर्गों में भर्तियों में पर्याप्त उम्मीदवार नहीं मिल पाने के कारण बहुत से विभागों में आरक्षित वर्गों में कई पदों का बैकलॉग था। आज उन्ही विभागों में सीधी भर्ती वाले पदों पर आरक्षित वर्गों के पदों की संख्या उनके तय कोटे से अधिक कैसे हो गई ? विदित है कि विभागीय पदोन्नति वाले पदों में पूर्व से ही एससी एसटी ओबीसी वर्गों का प्रतिनिधित्व नगन्य बना हुआ है। वर्ष 2012 में प्रदेश सरकार द्वारा गठित इंदू कुमार पांडे कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार एससी एसटी के कुल 19% व 04% आरक्षण की तुलना में
ग्रुप “क” में क्रमशः11.64% व 2.98%,
ग्रुप “ख” में क्रमशः 12.18% व 2.70%,
ग्रुप “ग” में 13.91% व 1.66% का प्रतिनिधित्व है.जो कि तय आरक्षण से बहुत कम है।
वर्ष 2012 से इन वर्गों की पदोन्नतियों पर रोक के कारण राज्य में इन वर्गों के प्रतिनिधित्व में और भी गिरावट आई है. जो कि सामजिक न्याय की अवधारणा के विरुद्ध है।
नेता विपक्ष ने कहा कि उपर्युक्त वर्गों का प्रदेश में विभिन्न विभागों में न्यूनतम प्रतिनिधित्व को देखते हुए एवं राज्याधीन सेवाओं में इन वर्गों के युवाओं के लिए लगातार कम व समाप्त होते अवसरों को देखते हुए प्रथम दृष्टया शीघ्र ही इन विज्ञापनों की शासकीय स्तर पर जाँच की जाय.एवं उपर्युक्त समस्या के समाधान के लिए पूर्व की भांति विभागों में सीधी भर्ती के कुल रिक्तियों के आधार पर पदों का आवंटन किया जाये या विभागीय पदोन्नति वाले पदों में भी रोस्टर निर्धारित करते हुए रोस्टर के माध्यम से ही पदोन्नतियां की जानी चाहिए. या रोस्टर का निर्धारण मात्र सीधी भर्ती के पदों के आधार पर करने की बजाय संपूर्ण विभागीय स्तर पर किया जाना चाहिए. इस हेतु शासनादेश जारी करते हुए राज्याधीन सेवाओं में इन वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करते हुए न्याय दिया जाय।